ONE7 कार्तिक मास में जितेन्द्रिय रहकर नित्य स्नान करें और हविष्य (जौ, गेहूं, मूंग, दूध-दही और घी आदि) का एकबार भोजन करें तो सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत को आश्विन की पूर्णिमा से प्रारंभ करके 31 दिन वें कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को समाप्त करें। धर्म कर्मादि की साधना के लिए स्नान करने की सदैव आवश्यकता होती है। इसके सिवाय आरोग्य की अभिवृद्धि और उसकी रक्षा के लिए भी नित्य स्नान से कल्याण होता है। विशेषकर माघ, वैशाख और कार्तिक का नित्य स्नान अधिक महत्व का है। Chelsea Arsenal मदन पारिजात में लिखा है कि- कार्तिकं सकलं मासं नित्यस्नायी जितेन्द्रिय:। जपन् हविष्यभुक्छान्त: सर्वपापै: प्रमुच्यते।। अर्थात् कार्तिक मास में जितेन्द्रिय रहकर नित्य स्नान करें और हविष्य (जौ, गेहूं, मूंग, दूध-दही और घी आदि) का एकबार भोजन करें तो सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत को आश्विन की पूर्णिमा से प्रारंभ करके 31 दिन वें कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को समाप्त करें। इन जगहों पर करें स्नान इसमें स्नान के लिए घर के बर्तनों की अपेक्षा कुआं, बावली या तालाब आदि अच्छे...